गाँव छोड़ शहर में आ बसा, मेहनत मजदूरी कर कमाने खाने लगा | शहर उसे कभी नही भाया, अजीब सी दौड़ में सब यहाँ भागते रहते | वो शहर में होते हुए भी शहर का कभी हिस्सा नही रहा | जब अपनी हाथ गाड़ी के पास दो पल सुस्ताने बैठता तो दूर से ही शहर को और शहरवासियों को निहारता रहता | चमचमाती गाड़ियों में लोग सर्राटे से निकल जाते | एक अजीब सी उधेड़ बुन में सब फसे थे | कहने को उनमे और इसमें कई फरक थे पर फ़िर भी पैसे जोड़ने की दौड़ में दोनों लगे थे |
एक सुखी रोटी देख उसने पेट भरना सीख लिया था | शहर की दौड़ती भीड़ को देख उसने जीना सीख लिया था |
4 comments:
Nice.. In fact, even we are leading a similar life.. :)
:)
very true....
because its not less than a fact.
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